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देव विभूति से मनुष्यत्व का यह / तारा सिंह
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07:22, 28 नवम्बर 2007
जो स्वयं प्रकृति का समानान्तर , सुंदर है <br>
जो स्वयं खड़ा होकर निहारता और विचारता है <br>
कहाँ अपना बिम्ब विजरित करना था <br>
कहाँ हो चुका , कहाँ - कहाँ और करना है <br>
ऐसे देव की निन्दा हम कैसे सुन सकते हैं <br>
Pratishtha
KKSahayogi,
प्रशासक
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प्रबंधक
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