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जो स्वयं प्रकृति का समानान्तर , सुंदर है <br>
जो स्वयं खड़ा होकर निहारता और विचारता है <br>
कहाँ अपना बिम्ब विजरित करना था <br>
कहाँ हो चुका , कहाँ - कहाँ और करना है <br>
ऐसे देव की निन्दा हम कैसे सुन सकते हैं <br>