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नापाकपन / हरिऔध

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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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|संग्रह=चुभते चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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<poem>
देख वु+ल की देवियाँ कँपने लगीं।

रो उठी मरजाद बेवों के छले।

जो चली गंगा नहाने, क्यों उसे।

पाप - धारा में बहाने हम चले।

रंग बेवों का बिगड़ते देख कर।

किस लिए हैं ढंग से मुँह मोड़ते।

जो सुधार तीरथ बनाती गेह को।

क्यों उसे हैं तीरथों में छोड़ते।

जोग तो वह कर सकेगी ही नहीं।

जिस किसी को भोग ही की ताक हो।

जो हमीं रक्खें न उस का पाकपन।

पाक तीरथ क्यों न तो नापाक हो।

जब कि बेवा हैं गिरी ही, तो उन्हें।

दे न देवें पाप का थैला कभी।

मस्तियों से चूर दिल के मैल से।

तीरथों को कर न दें मैला कभी।
</poem>
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