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हरी हकी हरी दूब पर<br>ओस की बूँदेबूंदे<br>
अभी थी,<br>
अभी नहीं हैँ हैं|<br>
ऐसी खुशियाँ<br>
जो हमेशा हमारा साथ दें<br>
कभी नहीं थी,<br>
कहीँ कहीं नहीं हैं |<br><br>
क्काँयर की कोख से<br>
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ<br>
या उसके ताप से भाप बनी,<br>
ओस की बुँदोँ बुँदों को ढुँढ़ुँ ढूंढूँ?<br><br>
सूर्य एक सत्य है<br>
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता<br>
मगर ओस भी तो एक सच्चाइ सच्चाई है<br>
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है<br>
क्योँ क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ ?<br>कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ ?<br><br>
सूर्य तो फिर भी उगेगा,<br>
लेकिन मेरी बगीची की<br>
हरी-हरी दूब पर,<br>
ओस की बूँदबूंद<br>हर मौसम मेँ नहीँ में नहीं मिलेगी |