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निश्शब्द / मन्त्रेश्वर झा

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जीवन मे एक समय अबैत छैककर्म, अकर्म जखन पहाड़ो पर दूबि उगिदुष्कर्म घोषितभऽ जाइत छैकचट्टान के फाड़ि पानिक अजस्रस्रोत बहय लगैत वाक्हरण तखनो भऽ जाइत छैकलगैत छैक जेना नव सृष्टिकरचना आ लोक निश्शब्द भऽ रहल होजाइत अछिऊसर जमीन पर गहूमकदोस्त, महिम, संबंधिक अपेक्षितबाली नाचय लगैत जखन रास्ता बदलि लैत छैकधानक लाबा फूटय लगैत छैकआ अहाँ अपनसभटा काँट गुलाब स्वयं पर टकटकी लगेबाकलेल विवश भऽ जाइत छैकजाइ छीसभटा पात सिङरहार तखनो भऽ जाइत छैकछी निश्शब्द।प्रत्येक पंछीक स्वर मे‘ब्रह्म सत्यम्’ होथि वा नहिकोयलीक कुहुककजगत मिथ्याक वोध जाबतस्पंदन होमय होबय लगैत छैकमुदा आहि रे बाप।ता धरि नालाक जल नदी मेसदा सँ अनवरत बहैत झरनाअकस्मात् सुखा किएकआ नदीक जल महा उदधिक गर्भ मेविलीन भऽ जाइत छैक,सभ दिनुका धनहर खेतस्वयं केँ चिन्हबाक आ स्वयं सँवार्ता करबाक समय जखनप्रकट होबय लगैत छैककोना समुद्र जकाँ अथाह तखनो लोक भऽ जाइत छैक,अछिसभटा पंछीक स्वर कौआकनिश्शब्द।काँव-काँवक जकाँकेहनो होउ आस्तिक वा नास्तिककटाह लागय सभटा द्वैत भाव टुटय लगैत छैकअपन पूर्व जीवनक इतरायलआ आनक द्वैत,मित्रक बहसल छन्दशत्रुक द्वैत,कोना मित्रक आ शत्रुक द्वैत,पापक आ पुण्यक द्वैतकर्मक आ अकर्मक द्वैतसभ किछु भऽ जाइत छैकअकस्मात बन्दक्षत विक्षत,कोना पसरय लगैत आत्मा दाह भऽ जाइत छैकचारू भर दुर्गन्धसमक्ष,से एभ एहिना होइतसमेटने अज्ञातरहैत छैकविराट परमात्मा,आइयो कतहु शब्द तखनो ने कतहुपहाड़ केँ चीड़ि कोनो झरनाफुटल हैतगहूमक दाना इतरायल हैतधानक खेत अपनेबोझ सँ अलसायल हैतपंछीक कलरव कयने हैतकतहु ककरो उल्लसितप्रकृतिक लीला चलैत बहराइत छैक एहिनाअपन व्यर्थताक अनुभवजकरा जतेक शीघ्र आ लोक भऽ जाय से नीकजे होइत अछि सैह होइत जाइत अछितखन शिकाइत कथीकनिश्शब्द,तकरे प्रतीति होयब छी मोक्ष।टुकुर टुकुर तकैतटुकुर टुकुर तकैत।
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