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चिरैया / सुमन केशरी

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(मेरी) खिड़की के बाहर
चिड़िया का बच्चा बोला
बिटिया बोली
चिड़िया का बच्चा बोला

खिड़की के बाहर
मालती लता
बड़ी सघन लता
उसी में छिपा इक नन्हा-सा घर चिड़िया का
लता की छाव में
पत्तों की ठाँव में
दाने चुगाती और
गाने सुनाती
अपनी पंखों की फर्र फर्र से
हवा को चलाती
इक नन्हीं चिरैय़ा

रोज सुबह बोलकर सूरज को जगाती
सांझ को उसके लिए लोरी वह गाती
उसकी बोली की गुँजन में
दिखता आकाश है
धरती है
जीवन है

मेरे जीवन में आई इक प्यारी चिरैया

मेरी खिड़की के बाहर
चिड़िया का बच्चा बोला
चिड़िया का बच्चा बोला

बिटिया बोली
चिड़िया का बच्चा बोला.
</poem>
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