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Kavita Kosh से
कुछ गुनगुना रही थी
अस्फुट स्वर में।
मुझे मेरे ही खेल की दुनिया में मगन कर आहिस्ता से चली गई तुम ...
आज भी जब मैं ढूंढ़ती हूं तुम्हें