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06:40, 2 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गिरिराज किराडू
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
अब मैं एक कवि की तरह नहीं रहता
मुझे खंज़र की उदासीनता से डर लगने लगा है
अब मैं एक नागरिक की तरह नहीं रहता
मुझे एक वधिक की करुणा से डर लगने लगा है
अब मैं एक प्रेमी की तरह नहीं रहता
मुझे अपनी भाषा के अभिनय से डर लगने लगा है
उन्हें मेरी कब्र पर बवाल पर मत करने देना
मुझे मृतक होने से डर लगने लगा है
</poem>
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