Changes

मर्सिया-३ / गिरिराज किराडू

1,542 bytes added, 06:51, 2 अप्रैल 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिराज किराडू |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गिरिराज किराडू
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
दस दिन में तीसरी बार शव
– इस बार तुम नहीं हो एक बरबाद बस तुम्हें एक दूसरे संसार में ले जा चुकी है –
मैं अपने ढंग से क्रूर हूँ और कोमल
आधा कटा हुआ शव है बिना पंखों का आधी हथेली में समा जाये उतना
– चींटियाँ नहीं हैं –
मैं देर तक देखता हूँ

यह हत्या है शव कहता है
घर में भी बन गई है कोई क़त्लगाह
एकदम खुले में
आस्मान और ज़मीन के बीच कहीं
अख़बार से नहीं हाथ से उठाता हूँ
और सीढ़ियाँ उतर कर पीछे दफ़न करके आता हूँ
एक पल के लिए ख़याल हो आता है अपने एक दिन लाश हो जाने का
कहीं लिख कर रख दूँ मुझे जलाना मत

मैं मिट्टी के भीतर रहूँगा
इस बच्चे की तरह
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits