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गाना, गला, कंठ / हरिऔध

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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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<poem>
हो सके हम सुखी नहीं अब भी।
आप का मेघराज आना सुन।
आँख से आज ढल पड़ा आँसू।
मल गया दिल मलार गाना सुन।

बेसुरी तब बनी न क्यों बंसी।
बीन का तार तब न क्यों टूटा।
तब रहीं क्या सरंगियाँ बजती।
आज सस्ते अगर गला छूटा।

बोल का मोल जान कर के भी।
कंठ के साथ क्यों नहीं तुलती।
जब नहीं ठीक ठीक बोल सकी।
ढोल की पोल क्यों न तब खुलती।

कंठ की खींच तान में पड़ कर।
हो गया बन्द बोल का भी दम।
तंग होता रहा बहुत तबला।
दंग होता रहा मृदंग न कम।
</poem>
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