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<poem>
बारिश हो रही है
बड़े पेड़ जवान लड़कों की तरह
मस्ती में झूमते हुए
एक-दूसरे की झप्पी ले रहे हैं
हो-हो कर कहकहे लगा रहे हैं मंझले
कम नहीं हैं छोटे भी
बच्चों की तरह
उछल-उछलकर
नाच-गा रहे हैं
घास तो इतनी मगन है
कि नाक बंदकर पानी में
डुबकी लगाती है
तो देर तक उतराती नहीं
कीट-पतंग, पशु-पक्षी अराजक हो गये हैं
दिन के तम का लाभ लेकर आशिकों की तरह
इश्क फरमा रहे हैं
हो रही है वर्षा
जिनको करना है घर-बाहर का काम
प्रार्थना कर रहे हैं -नन्ना रे नन्ना रे
जबकि बच्चे गा रहे हैं -बरसो रे मेघा मेघा
मजदूर बैठे ठोंक रहे हैं खैनी जैसे अपना माथा
उनकी स्त्रियाँ टटोल रही है हांड़ी
रात की रोटी की चिंता में
अमीरों के लिए शराब-कबाब का मौसम है
स्लम के लिए फांके का
चूहे, मेढक, सांप ही नहीं
बेघर होने के डर में हैं
मुसहर बंसफोर भी
सबकी नजरें आकाश की ओर उठी
फरियाद कर रही हैं
परेशान हैं बादल
किसकी सुनें
</poem>
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