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प्रेम–राग-१ / रंजना जायसवाल

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<poem>
जाने क्या तो है
तुम्हारी आँखों में
मन हो उठा है अवश
खूशबू एसी कि महक उठा है
तन उपवन
बंध जाना चाहता है मेरा
आजाद मन
कुछ तो है तुम्हारी आँखों में
की यह जानकर भी कि
गुरुत्वाकर्षण का नियम
चाँद पर काम नहीं करता
छू नहीं सकता आकाश
लाख ले उछालें
समुंद्र
अवश इच्छा से घिरा मन फिर
क्यों पाना-छूना चाहता है तुम्हें
असंभव का आकर्षण
पराकाष्ठा का बिंदु
कविता की आद्यभूमि
</poem>
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