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10:35, 4 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेमचन्द गांधी
|अनुवादक=
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<poem>
दुनिया की तमाम
ताकतवर चीजों से
लड़ती आई है हमारी भाषा
जैसे हिंसक पशुओं से जंगलों में
शताब्दियों से कुलांचे भर-भर कर
जिंदा बचते आए हैं
शक्तिशाली हिरणों के वंशज
खून से लथपथ होकर भी
हार नहीं मानी जिस भाषा ने
जिसने नहीं डाले हथियार
किसी अंतिम सत्ता के सामने
हम उसी भाषा में गाते हैं
हम उस जुबान के गायक हैं
जो इंसान और कायनात की जुगलबंदी में
हर वक्त
हवा-सी सरपट दौड़ी जाती है.
</poem>
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