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11:01, 4 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लूसिलै क्लिफ्टन
|अनुवादक= प्रेमचन्द गांधी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अरे गर्भाशय तुम
तुम तो बहुत ही सहनशील रहे हो
जैसे कोई ज़ुराब
जबकि मैं ही तुम्हारे भीतर सरकाती रही
अपने जीवित और मृत शिशु और
अब वे ही काट फेंकना चाहते हैं तुम्हें
जहां मैं जा रही हूं वहां
अब मुझे लम्बे मोजों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी
कहां जा रही हूं मैं बुढ़ाती हुई लड़की
तुम्हारे बिना मेरे गर्भाशय
ओ मेरी रक्तरंजित पहचान
मेरी एस्ट्रोजन रसोई
मेरी कामनाओं के काले झोले
मैं कहां जा सकती हूं
तुम्हारे बिना
नंगे पांव और
कहां जा सकते हो तुम
मेरे बिना
</poem>
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