Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालसिंह दिल |अनुवादक=सत्यपाल सहग...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लालसिंह दिल
|अनुवादक=सत्यपाल सहगल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सपना ही रह गया
कि फंदा पहनायेंगे
बुरे शरीफज़ादों को
वे लकीरें निकालेंगे नाक के साथ
हिसाब देंगे लोगों के आगे।

प्रतिक्रांति के पैर
हमारी छातियों पर आ टिके
ज़लील होना ही हमारा
जैसे एकमात्र
पड़ाव रह गया।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits