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{{KKRachna
|रचनाकार=लालसिंह दिल
|अनुवादक=प्रितपाल सिंह
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<poem>
मैंने चाहा चाँद पर लिखूं
तेरे नाम के साथ नाम अपना
मैंने चाहा हर ज़र्रे के साथ
कर दूँ साँझी खुशी
तेरी दिलबरी में
मेरा हाल था कुछ ऐसा
मैं तेरी प्यारी बातों का
क्यों नहीं पा सका भेद

तू मुझे फिर नहीं मिली

अकेले भी नहीं मिल सकी
मैं अपनी साधना में
कैसे कैसे जंगल नहीं फिरा
कैसे कैसे सागर नहीं तिरा
कौन से आकाश नहीं टोहे
कुछ भी तुझ से मगर
तेरा नहीं मिला
</poem>
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