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09:23, 9 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=देवयानी
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<poem>
मुरझाना तो इस तरह जैसे
मुरझाते हैं अनार के फूल
एक नए फल को जन्म देते हुए
जो भरा हो असंख्य सुर्ख लाल रसीले दानों से
झरो तो इस तरह जैसे
झरते हैं हरसिंगार के फूल मुंह अन्धेरे
धरती पर बिछा देते हैं चादर
जिन्हें चुन लेती हूँ मैं
सुबह सुबह
टूटना तो इस तरह जैसे
टूटता है बीज
जब जन्म लेता हैं नया अंकुर
जीवन की सम्भावना लिए अपार
गिरना किसी झरने की तरह
सर सब्ज कर देना धरती
सूखे पत्ते की तरह मत झरना
इस तरह मत टूटना
जैसे टूटता है हृदय प्रेम में
</poem>