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09:30, 9 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=देवयानी
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<poem>
नींद से जागती हूँ
जैसे गोली छूटती है बन्दूक से
सोती हूँ जैसे धावक बैठा हो तैयार
दौड के लिए
शुरू होता है दिन
एक ऐसी दौड की तरह
जिसमे जीत का लक्ष्य नहीं
एक ऐसी मैराथन जिसके लिए
नहीं है सामने कोई धावक
थामने को मशाल
किसी भी निश्चित दूरी के बाद
अपनी मशाल को
अपने हाथों मे थामे मजबूती के साथ
खत्म होती है दौड
हर रात
ढ़हती हूँ फिर नींद के आगोश में
</poem>