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10:00, 9 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=देवयानी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
यह जो तुम सुंदर युवक में तब्दील हुए जाते हो
यह जो तुम्हारी नाक के नीचे और गालो पर
नर्म राएं उगने लगे हैं
यह जो तुम बलिष्ठ दिखने लगे हो
इतना मुग्ध होती हूं मैं तम्हें देख कर
कि मन ही मन उतार लेती हूं तुम्हारी नजर
अक्सर ही तुम्हारे माथे पर दिठौना लगा देती हूं
</poem>