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खुद मुख्तार औरत / देवयानी

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अपने श्रम के पसीने से
रचती हूं स्वाभिमान का हर एक क्षण

रोज गढती हूं एक ख्वाब
सहेजती हूं उसे
श्रम से क्लांत हथेलियों के बीच
आपके दिए अपमान के नश्तर
अपने सीने में झेलती हूं
सह जाती हूं तिल तिल
हंसती हूं खिल खिल

क्षमा करें श्रीमान
मेरा माथा गर्व से उन्नत है
मुझ से न आवाज़ नीची रखी जाती है
न निगाहें झुकाना आता है मुझे
मैंने सिर्फ सर उठा कर जीना सीखा है


जो न देखी जाती हो आपसे यह ख़ुद मुख्तार औरत
तो निगाहें फेर लिया कीजिए
</poem>
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