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|संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>कितने पिये है दर्द के, आंसू बताऊं क्याये दास्ताने-ग़म भी किसी को सुनाऊं क्या?
कितने पिये है दर्द रिश्तों के, आंसू बताऊं क्या<br>आईने में दरारें हैं पड़ गईंये दास्ताने-ग़म भी किसी अब आईने से चेहरे को सुनाऊं अपने छुपाऊं क्या?<br><br>
रिश्तों के आईने में दरारें हैं पड़ गईं<br>दुश्मन जो आज बन गए, कल तक तो भाई थेअब आईने से चेहरे को अपने मजबूरियां हैं मेरी, मैं उनसे छुपाऊं क्या?<br><br>
दुश्मन जो आज बन गए, कल तक तो भाई थे<br>चारों तरफ से तेज़ हवाओं में हूं घिरीमजबूरियां हैं मेरी, मैं उनसे छुपाऊं इन आँधियों के बीच में दीपक जलाऊं क्या?<br><br>
चारों तरफ से तेज़ हवाओं दीवानगी में हूं घिरी<br>कट गए मौसम बहार केइन आँधियों अब पतझड़ों के बीच में दीपक जलाऊं खौफ से दामन बचाऊं क्या?<br><br>
दीवानगी में कट गए मौसम बहार के<br>अब पतझड़ों के खौफ से दामन बचाऊं क्या?<br><br> साजि़श मेरे खि़लाफ मेरे दोस्तों की थी<br>
इल्ज़ाम दुशमनों पे मैं ‘देवी’ लगाऊं क्या?
</poem>
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