1,130 bytes added,
08:00, 11 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=सृष्टि पर पहरा / केदारनाथ सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
लोकतन्त्र के जन्म से बहुत पहले का
एक जिन्दा ध्वनि-लोकतन्त्र है यह
जिसके एक छोटे से ‘हम ’ में
तुम सुन सकते हो करोडों
‘मैं ’ की घडकनें
किताबें .
जरा देर से आईं..
इसलिए खो भी जाएं
तो डर नहीं इसे
क्योंकि जबान –
इसकी सबसे बडी लाइब्रेरी है आज भी
कभी आना मेरे घर
तुम्हें सुनाऊंगा
मेरे झरोखे पर रखा शंख है यह
जिसमें धीमे-धीमे बजते हैं
सातों समुद्र.
</poem>