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|रचनाकार=केदारनाथ सिंह
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|संग्रह=सृष्टि पर पहरा / केदारनाथ सिंह
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<poem>
(जो मैंने मंगल माँझी से सुना था)

आम की सोर पर
मत करना वार
नहीं तो महुआ रात भर
रोएगा जंगल में

कच्चा बांस कभी काटना मत
नहीं तो सारी बांसुरियाँ
हो जाएंगी बेसुरी

कल जो मिला था राह में
हैरान-परेशान
उसकी पूछती हुई आँखें
भूलना मत
नहीं तो सांझ का तारा
भटक जाएगा रास्ता

किसी को प्यार करना
तो चाहे चले जाना सात समुंदर पार
पर भूलना मत
कि तुम्हारी देह ने एक देह का
नमक खाया है।
</poem>
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