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09:07, 17 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अपर्णा भटनागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
ये उसकी खिड़की है
जहां से झाँकने देती है नीली आँखों वाले समंदर को
टिकाने देती है सूरज को अपनी लाल कोहनी
और अपनी नींद को बिठा देती है चिड़िया के मखमली परों पर
क्षितिज के ध्रुव तारे से कह लेती है बात
कि वह प्रेम करती है
और सहसा दूब हंसने लगती है कौतुक से.
</poem>