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शोभा बनेंगे ,
किसी आक्रमणकारी राजा के दरबार की!
::फर्श पर एक विद्रोही कवि का खून बिखरा होगा!
हाँ,
एक मातमी गीत अपने अजन्मे बच्चे के लिए
तुम्हारी हिचकियों की लय पर!
::बहुत छोटी होती है सिसकारियों की उम्र
हाँ
तुम्हारे अन्तः वस्त्रों के चटक रंग धागों से!
पर इससे पहले कि उस दीवार पर-
:::जहाँ धुंध की तरह दिखते हैं तुम्हारे बिखराए बादल:::जिनमें से झांक रहा हैं एक दागदार चाँद!:::वहीं दूसरी तस्वीर में:::किसी राजसी हाथी के पैरों तले है दार्शनिक का सर!
-मैं टांग दूँ अपना कवच,
कह आओ मेरी माँ से कि वो कफ़न बुने,