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Kavita Kosh से
तुम्ही बताओ मैं अपने हक में क्या कहता
मेरे खिलाफ खिलाफ़ भरे शहर की गवाही थी
कई चरागनिहाँ थे चराग के पीछे
मेरे बजूद के अन्दर मेरी तबाही थी
तेरी जन्नत ज़न्नत से निकाला हुआ इन्सान हूँ मैं
मेर ऐजाज़ अज़ल ही से खताकारी है