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|संग्रह=ग्राम्या / सुमित्रानंदन पंत
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{{KKCatKavita}}{{KKPrasiddhRachna}}<poem>यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर ,<br>::दल पर दल खोल ह्रदय हृदय के अस्तर <br>::जब बिठलाती प्रसन्न होकर <br>::वह अमर प्रणय के शतदल पर !<br>
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर <br>,::क्षण में प्राणों की पीड़ा हर <br>,नवजीवन ::नव जीवन का दे सकती वर <br>::वह अधरों पर धर मदिराधर .<br>मदिराधर।
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,<br>::वासनावर्त में दल डाल प्रखर <br>::वह अंध गर्त में चिर दुस्तर <br>::नर को धेकेल ढकेल सकती सत्वर ! <br/poem>रचनाकाल: जनवरी’ ४०