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गौतम राजऋषि

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/* प्रतिनिधि ग़ज़लें */
* [[चुभती-चुभती सी ये कैसी पेड़ों से है उतरी धूप / गौतम राजरिशी]]
* [[देख पंछी जा रहें अपने बसेरों में / गौतम राजरिशी]]
* [[हैं जितनी परतें यहां यहाँ आसमान में शामिल / गौतम राजरिशी]]
* [[इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है / गौतम राजरिशी]]
* [[बहो, अब ऐ हवा! ऐसे कि ये मौसम सुलग उट्ठे / गौतम राजरिशी]]
* [[न समझो बुझ चुकी है आग / गौतम राजरिशी]]
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