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मेरे हमसफर / निवेदिता

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<poem>
जख्म जितने थे
सब हरे हुए
दर्द इतना है
पर कोई चारागर नहीं
दिल के कत्लगाह में
कत्ल होने को तैयार बैठे रहे हम
दर्द-ए पिन्हां थे
पर कह न सके
तेग-ए इश्क से घायल हम दोनों
कौन किसका जख्म भरे ए दिल
जिस्म दहकता लावा बन
सुलगता रहा
आंसुओं से लिपटी रात
भींगती रही
रंग-बेरंग हुई
ख्वाब-बेख्वाब हुए
दिल –ए- गमदीद की
कौन फिक्र करे
ए दिल अब कोई हमसफीर नहीं
</poem>
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