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04:36, 22 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विपिन चौधरी
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<poem>
वे आकाश की ओर प्रस्थान करने के बाद
सीधे पाताल का ही रुख करती हैं
दायाँ की मस्ती
बाएँ की तफरीह को एक तरफ छोड़
सीधाई या निचाई ही उन्हें भाती हैं
तभी तो पाँवों का अनुशासन हैं सीढियां
एक तल की सतह से हौले-हौले उठ
दूसरे तल में बेआवाज
जीवित तलाश की तरह पहुँचते हुए
चुपके से अपना कद निकालते हुए
एक किनारे से
खामोश अंधेरे को ले कर
दूसरे तल की चहकती रोशनी
से ताल-मेल मिलाकर
तीसरे माले में जा पहुँचती हैं
जहाँ एक गर्भवती तन्हा स्त्री
सूनी अवसादग्रस्त आँखों से किसी पदचाप की बाट जोह रही है
सीढ़िया,
यहाँ फिर एक तमीज़ बरतती हैं
और उम्मीद को अपने भीतर
जगह दे
बिना किसी आवाज़ के
ऊपर की ओर चल देती हैं
</poem>