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06:11, 22 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निरंजन श्रोत्रिय
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<poem>
ईश्वर है
कि बस पहाड़ पर लुढ़कने से बच गई
बच्चे लौट आए स्कूल से सकुशल
पिता चिंतामुक्त माँ हँस रही है
प्रसव में जच्चा -बच्चा स्वस्थ हैं
दोस्त कहता है कि याद आती है
षड़यंत्रों के बीच बचा हुआ है जीवन
रसातल को नहीं गई पृथ्वी अभी तक।
तुम डर से
भोले विश्वासों में तब्दील हो गए हो
ईश्वर बाबू!
</poem>