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06:53, 22 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विपिन चौधरी
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<poem>
अब मैं कृष्ण कलाओं में उतर चुकी हूँ
द्रौपदी का लम्बा वस्त्र बन एक चमत्कार में ढल चुकी हूँ
मैंने साध लिया है सीता सा अखंड सौभाग्य
अजातशत्रुओं के खेमे में जा चुकी हूँ मैं
मरियम सी उदासी मेरे तलुओं पर चिपक गयी है
मेरी स्मित में मोनालिसा के होंठों का भेद शामिल हो चुका है
हवाओं के अणुओं में बंद सरसराती लिपि
व्याकरण समेत पढ़ ली है मैंने
कहने की जरूरत नहीं
मैं इस वक्त प्रेम में हूँ
</poem>
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