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07:27, 22 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विपिन चौधरी
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|संग्रह=
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<poem>
यह इतिहास का दंभ है
कि लोग उसे बार-बार पलट कर देखें
और उसकी याद ताजा बनी रहे
वर्तमान का दंभ चाहता है
लोग उसे कोसते रहें और जीते रहें
भविष्य का दंभ
एक दिहाड़ीदार की रोजी की तरह
हर रोज पकता है और
हर रोज बिकता है
</poem>