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विचार वस्तु हैं / विपिन चौधरी

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विचार
शिकारी बन
अंधेरी सुरंग में अपनी राह बना रहे हैं
एक दिन जरूर वे अपने
जहरीले तीरों से कोमल खरगोशों को मार डालेंगे
विचारों में एक लाल कालीन
खुल रहा है
आकाश से सलोनी परियां उतर रही हैं
घोड़े के हिनहिनाने की खबर है
कि एक राजकुमार ने दस्तक दी है
यह मत्स्यकन्या भी एक विचार है
जिसे प्रेम के भरोसे जिन्दा रखा गया
और यह गुडिया भी
जिसकी पलकें किसी इंतजार में
एक पल को भी नहीं मुंदी
मेरे आसपास चार दीवारें हैं
मेज़ के नीचे
पानी से लबालब भरी सुराही
एक फाउनटेन पेन
उदासी का गज भर लंबा कड़क चमड़ा
और अँधेरा भी
इन सबके अलावा वो विचार
मेरे पांवों में बिछे हैं
पिछले 24 घंटे जो मेरे नज़दीक आए
और आकर यहीं ठहर गये
इस कमरे में कदम धरने की
जगह नहीं हैं
‘क्योंकि विचार सचमुच में वस्तु हैं’
</poem>
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