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Kavita Kosh से
खोद्यो हो अेक ही रात मांय
म्हैं भी :
अर थारै काळजै रै बीचोबीच
जाय’र लागूंली!
तो लोक री लाज रुखाळण नै
आपरी गवाड़ी संभाळण नै
कोई तो द्गह्नद्घ[द्म;द्मह्य मुखियो आवाज उठासी
या इणी ढाळ धोळी कारां रै
काळा शीशां लारै मूंछ्यां झुकासी