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इश्क़ की पाकीज़गी को हमज़बां होने तो दो
सब्र भी टूटे तसल्ली देके जब गर तोड़े कोई अश्क भी गिर जायें पलकों पर गिरां <ref>भरी</ref>होने तो दो
तुम हमारे दिल के मालिक हो हमें मालूम है
पर किरायेदार से ख़ाली मकां होने तो दो
सैकड़ों क़िस्से उठेंगे वाइज़ाने-शहर <ref>नगर के मौलाना</ref>के
तुम शहर में महफ़िले-आवारगां होने तो दो
फिर उठा देना क़यामत फिर बुलाना हश्र <ref>मिर्त्यु पशचात हिसाब का दिन</ref>में इक दफ़ा आराइशे-बज़्मे-जहां <ref>दुन्या की सजावट</ref>होने तो दो
फिर तिरी यादें उठें फिर ज़ख़्म के टांके खुलें
फिर ग़ज़ल लिक्खूं ज़रा दिल नीमजां <ref>अधमरा</ref>होने तो दो
वो अधूरा शेर अब तकमील <ref>पूरा होना</ref>के नज़दीक़ हैआज उस नामेहरबां को मेहरबां होने तो दो</poem>{{KKMeaning}}