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Kavita Kosh से
हम ग़रीबों के ख़्वाब कुछ भी नहीं
मन की दुनिया में सब ही उरियाँ <ref>नंगे </ref> हैं
दिल के आगे हिजाब कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी भर का लेन देन ‘अना’
और हिजाबोहिसाबो-किताब कुछ भी नहीं
</poem>
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