|रचनाकार=घनानंद
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इन बाट परी सुधि रावरे भूलनि,
कैसे उराहनौ दीजिए जू . इक आस तिहारी सों जीजै सदा ,घन चातक की गति लीजिए जू . अब तौ सब सीस चढाये लई ,
जु कछु मन भाई सो कीजिये जू.
‘घनआनन्द’ जीवन -प्रान सुजान,
तिहारिये बातनि जीजिये जू .
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