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काश बदली सर से पानी जो कभी धूप निकलती रहतीअपने निकल जाए फिर ज़ीस्त<ref>ज़िंदगी</ref> उम्मीद के साए बुज़दिली अपनी भी हिम्मत में ही पलती रहतीबदल जाए फिर
एक पल को भी अगर तेरा सहारा मिलता धूप आने के कुछ आसार तो दिखलाई पड़े ज़ीस्त<ref>ज़िंदगी ठोकरें खा </ref>उम्मीद के भी संभलती रहती साये में ही पल जाए फिर
फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में गुज़र जाते दिनपूछ ले हाल हमारा कभी वो भूले सेऔर हर रात तेरी याद मचलती रहतीज़िंदगी ठोकरें खाती है सम्हल जाए फिर
पाँव फैलाए अँधेरा है घरों फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में, फिर भी मेरा दिन गुज़रेशम्म: हालाँकि और हर इक बाम<ref>छज्जा</ref> पे जलती रहतीरात तेरी याद में ढल जाए फिर शांत दिखता है समुन्दर भी लिए गहराईजब कि नदिया वो कहे गर तो खिलौनों की लहर खूब उछलती रहतीतरह बन जाऊँ तू अगर होती खिलौना तो बहुत बेहतर थातुझसे “श्रद्धा” ये कुछ नहीं और, तबीयत ही बहलती रहतीबहल जाए फिर
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