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हो बस एक ऐसा शख्स जोऐसा हो , मोहब्बत-ओ-जो टूट कर वफ़ा करे
उठाए हाथ जब भी वो, मेरे लिए दुआ करे
अकेले बैठूं जो कभी मैं, खुद को सोचती हुई
तो आँखें मूंद के मेरीआँखें मूँद कर, वो पीछे से हंसा करे
मुझे बताए ग़लतियाँ भी, रास्ता दिखाए फिरभी वो रास्तावो देखे बन के आइना, हरेक मुझे हर एक पल खुदा दिखा करे
हूँ जो मुझे खफा मनाए करे भी वो , करके भोली सी शरारतें मना भी ले दुलार से
जो खिलखिला के हंस पडूँ, तो एकटक तका करे
हो वो ख़्वाब पूरे ख्वाब होंगे कब, नहीं ये “श्रद्धा” 'श्रद्धा' जानती मगरनहीं कज़ा से पहले चार दिनदो घड़ी ख़ुशी की, खुशी के रब अता करे
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