{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}} [[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है लैला मजनूँ के मिसालों पे हँसी आती है
अहलजब भी तक़मील-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती मोहब्बत का ख़याल आता है <br>लैला मजनूँ के मिसालों मुझको अपने ख़यालों पे हँसी आती है <br><br>
जब भी तक़मील-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है <br>लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं मुझको अपने ख़यालों उन वफ़ा ढूँढनेवालों पे हँसी आती है <br><br>
लोग अपने लिये औरों में वफ़ा ढूँढते हैं <br>देखनेवालों तबस्सुम को करम मत समझो उन वफ़ा ढूँढनेवालों उन्हें तो देखनेवालों पे हँसी आती है <br><br>
देखनेवालों तबस्सुम को करम मत समझो <br>उन्हें तो देखनेवालों पे हँसी आती है <br><br> चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी "फ़ाकिर" <br>अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है <br><br/poem>