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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}} [[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem> मेरी ज़ुबाँ से मेरी दास्ताँ सुनो तो सही यक़ीं करो न करो मेहरबाँ सुनो तो सही
मेरी ज़ुबाँ से मेरी दास्ताँ सुनो तो सही <br>चलो ये मान लिया मुजरिमे-मोहब्बत हैं यक़ीं करो न करो मेहरबाँ हमारे जुर्म का हमसे बयाँ सुनो तो सही <br><br>
चलो ये मान लिया मुजरिमे-मोहब्बत हैं <br>बनोगे दोस्त मेरे तुम भी दुश्मनों एक दिन हमारे जुर्म का हमसे बयाँ मेरी हयात की आह-ओ-फ़ुग़ाँ सुनो तो सही <br><br>
बनोगे दोस्त मेरे तुम भी दुश्मनों एक दिन <br>मेरी हयात की आहलबों को सी के जो बैठे हैं बज़्मे-ओ-फ़ुग़ाँ दुनिया में कभी तो उनकी भी ख़ामोशियाँ सुनो तो सही <br><br>
लबों को सी के जो बैठे हैं बज़्मे-दुनिया में <br>कभी तो उनकी भी ख़ामोशियाँ सुनो तो सही <br><br> कहोगे वक़्त को मुजरिम भरी बहारों में <br>जला था कैसे मेरा आशियाँ सुनो तो सही <br><br/poem>
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