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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}} [[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>शायद मैं ज़िन्दगी की सहर लेके आ गया क़ातिल को आज अपने ही घर लेके आ गया
शायद ता-उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं ज़िन्दगी इश्क़ की सहर लेके आ गया <br>क़ातिल को आज अपने ही घर अंजाम ये कि गर्द-ए-सफ़र लेके आ गया <br><br>
ता-उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं इश्क़ की <br>नश्तर है मेरे हाथ में, कांधों पे मैक़दा अंजाम ये कि गर्दलो मैं इलाज-ए-दर्द-ए-सफ़र जिगर लेके आ गया <br><br>
नश्तर है मेरे हाथ में, कांधों पे मैक़दा <br>लो मैं इलाज-ए-दर्द-ए-जिगर लेके आ गया <br><br> "फ़ाकिर" सनमकदे में न आता मैं लौटकर <br>इक ज़ख़्म भर गया था इधर लेके आ गया <br><br/poem>
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