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|रचनाकार=संतोष मायामोहन
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
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{{KKCatKavita}}
<poem>पति थे
म्हारै ई गरभ पळो।
आवो पांखां बा’र
मुळको
कर मसकरी
बोलो-- मां!</poem>
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म्हारै ई गरभ पळो।
आवो पांखां बा’र
मुळको
कर मसकरी
बोलो-- मां!</poem>