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|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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<Poem>भुरती मिनखाजूण
स्यांत सूती चिताग्नि मांय
उठती लाय
घेरै आपरी जगां
मंजर मांड देवै जीवण जातरा रो।
जीव सूं जीवण मिल्यो
मंडती बातां मगज मांय
कीं कैवै अर कीं नीं कैवै
नेन्हा-नेन्हा पगलियां सूं ले’र
अनुभव वाळै पगां ताणी।

लाय आकरी हुवती
मिनखजूण धूंवै मांय पंचतत्त्वां में मिलती
राख बणती
आंसू ठुळकावतां
बाथां मांय ले’र थ्यावस देवता लोग
उणरै हेताळुवां नैं
पूरी हुई एक जीवण जातरा
आपरी नवी जातरा खातर
पूठा आवता वै पग
समझता जीव-तत्त्व रो एक सार।
</poem>
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