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Kavita Kosh से
बिन बुलाए मेहमान की तरह
सपने, सपना बनकर !
अस्तु, श्री राजेन्द्र जोशी के इस संग्रह से गुजरना उनके व्यक्तित्व के एक अत्यन्त पावन अन्तरंग और निजी पक्ष से प्रतिकृत होने की तरह है। उनका यह पक्ष और उन्नत हो, वे इसके अनन्त का संधान कर कुछ और ऊँची उड़ाने भरें और काव्य-जगत में उनका जोरदार स्वागत हो - इस घड़ी यही मंगलकामनाएं करना चाहता हँू। हूँ।
- '''मालचन्द तिवाड़ी''' </poem>