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पंछी / मोहन पुरी

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<poem>हिवड़ो उमावता
गीत गावता
उड चाल्या है पंछी
आभा नैं कांख लेय’र
सूरज नैं चांच लेय’र।

पांख्यां सूं पवन नैं
मोड़ देय’र
मिनखां खातर
उकेरणी है आखरमाळा
लैणवार उडतां-उड़तां।

भरणो है, बाथां में
अणथाग आभो
पवन सूं लड़तां-लड़तां।
टाबर री
भोळी आंख्यां नैं
देवणी है
खुसी री चमक।

लड़ावणो है पंजो
वियाणां रै वेग सूं।
रूंखां री डाळ्यां पे
हास लेय’र
करणो है खाणो-दाणो
अर उधारी ले जाय’र
बधाणो है रूंखां रो वंस।
न्हावणो है
नदी रा उजळा जळ में,
तैर’र दबाणी है
नदी री पीठ बी।
रुतां मुजब घर बणाणो, चलाणो
प्रकृति में लगोलग चालण वाळा
उण रा रुखाळा है- पंछी।
अर मानखो....?</poem>
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