759 bytes added,
04:29, 16 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुम्भनदास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंत हि।
मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥१॥
मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।
कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥२॥
</poem>