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05:10, 16 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नंददास
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ताते श्री यमुने यमुने जु गावो ।
शेष सहस्त्र मुख निशदिन गावत, पार नहि पावत ताहि पावो ॥१॥
सकल सुख देनहार तातें करो उच्चार, कहत हो बारम्बार जिन भुलावो ।
नंददास की आस श्री यमुने पूरन करी, तातें घरी घरी चित्त लावि ॥२॥
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