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<poem>
अरी चल दूल्हे देखन जाय ।
सुंदर श्याम माधुरी मूरत अँखिया निरख सिराय ॥१॥
जुर आई ब्रज नार नवेली मोहन दिस मुसकाय ।
मोर बन्यो सिर कानन कुंडल बरबट मुख ही सुहाय ॥२॥
पहरे बसन जरकसी भूषन अंग अंग सुखकाय ।
केसी ये बनी बरात छबीली जगमग चुचाय ॥३॥
गोप सबा सरवर में फूले कमल परम लपटाय ।
नंददास गोपिन के दृग अलि लपटन को अकुलाय ॥४॥
</poem>
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