939 bytes added,
08:08, 16 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चतुर्भुजदास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
गोवर्धन गिरिसघनकंदरा रैन निवास कियो पिय प्यारी ॥
उठ चले भोर सुरत रस भीने नंदनंदन वृषभान दुलारी ॥१॥
इत विगलित कच माल मरगजी अटपटे भूषण रागमणी सारी ॥
उतहि अधरमिस पाग रहिथस दुहूदिश छबि बाढी अति भारी ॥२॥
घूमत आवत रति रणजीते करिणिसंग गजवर गिरिवरधारी ॥
चतुर्भुजदास निरख दंपतिसुख तनमनधन कीनो बलिहारी ॥३॥
</poem>